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धर्ममार्ग:चेतना का विकास

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ll HARE RAM ll धर्ममार्ग:चेतना का विकास चेतना के कारण ही मनुष्य सभी

प्राणियों में श्रेष्ठ है। मानव जीवन की श्रेष्ठता की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। योग वशिष्ठ में मानव की उत्कृष्टता के लिए चेतना को निरंतर बढ़ाने पर जोर दिया गया है। अन्य

जीव-जंतुओं में चेतना विकास का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। पशुओं में अवचेतन, चेतन और आत्म चेतना के तीन स्तरों का विकास हुआ होता है। इनमें विचार की चेतना नहीं होती है। लेकिन

डालफिन, ह्वेंल मछली और चिंपैंजी में चेतना का विकास अन्य पशुओं से काफी अधिक होता है। किन्तु विचार और धर्म-कर्म करने की क्षमता केवल मानव में ही होती है। मनुष्य में सुचेतन

शक्ति होने के कारण वह चेतना के चारों स्तरों को समाहित किए चलता है। अवचेतन का विकास पंशुओं में उत्तम होने के कारण वे मानवगत संकेतों और भावों को बेहतर तरीके से समझते है।

लेकिन वनस्पतियों में केवल अचेतन का विकास होता है इसलिए वे मानवगत भावों और संकेतों को समझने में असमर्थ होती है। वे केवल इधर-उधर भटकने, झूमने और गिरने का ही व्यवहार कर सकती

है। जहां तक निर्जीव वस्तुओं का प्रश्न है, इनमें चेतना आत्मस्तर तक ही होती है। चेतना का यह स्तर चारों में सबसे कम है। इस स्तर में शीत व गरम का अनुभव तो होता है, लेकिन इस अनुभव

के आधार पर ये कोई क्रिया या प्रतिक्रिया नहीं कर सकते है। क्या आत्मा केवल मनुष्य में होती है अन्य जीवों में नहीं, यह आज तक बहस का विषय बना हुआ है। इसी तरह चेतना, प्राण और

जीव को लेकर आज तक कोई एकमत नहीं हो सका है। योग वशिष्ठ के अनुसार आत्मा पशुओं और वनस्पतियों दोनों में होती है। ये चेतन व अवचेतन के द्वंद्व के कारण दु:खी तो होते है, लेकिन

द्वंद्वों को दूर करने की क्षमता इनमें नहीं होती है। चेतन शक्ति का स्तर शून्य होने के कारण ये व्यवहारगत किसी कार्य को करने में सक्षम नहीं होते है। चेतना के स्तरों का

विकास जैसे ही हुआ यानी मनुष्य जन्म मिला वह सब करने लग जाते है जो मनुष्येतर जीवों में संभव ही नहीं था। इसीलिए रामचरित मानस में संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने ''बड़े भाग मानुष तन

पावा'' की बात कही है। इसलिए इस जन्म में अधिक से अधिक शुभ कर्म कर सकें करे, तभी मनुष्य का जन्म सफल हो सकता है। Regards Shashie Shekhar HARE_RAM Astro_Remedies Shashi Shekhar Sharma Delhi Mobile-09818310075 polite.astro polite_astro

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