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जैसी दृष�टि वैसी सृष�टि

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ॠसांई राम

 

 

 

 

दृषà¥à¤Ÿà¤¿ के बदलते ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बदल जाती है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दृषà¥à¤Ÿà¤¿ का परिवरà¥à¤¤à¤¨

मौलिक परिवरà¥à¤¤à¤¨ है। अतः दृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बदलें सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को नहीं, दृषà¥à¤Ÿà¤¿ कापरिवरà¥à¤¤à¤¨ संभव है, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का नहीं। दृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बदला जा सकता है, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को

नहीं। हाà¤, इतना जरूर है कि दृषà¥à¤Ÿà¤¿ के परिवरà¥à¤¤à¤¨ में सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤­à¥€ बदल जातीहै। इसलिठतो समà¥à¤¯à¤•दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में सभी कà¥à¤› सतà¥à¤¯ होता है और मिथà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿ बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को देखता है। अचà¥à¤›à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤ और बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¤¾à¤ हमारी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ पर

आधारित हैं।दृषà¥à¤Ÿà¤¿ दो पà¥à¤°à¤•ार की होती है। à¤à¤• गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ और दूसरी छिनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€à¤¦à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¥¤ गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ खूबियों को और छिनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ खामियों को

देखता है। गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ बोलतीहै और छिनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है।गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सà¥à¤‚दर है औरछिनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ देखता है तो कहता है कि कितनी भदà¥à¤¦à¥€ आवाज है, कितने रà¥à¤–े

पैर हैं। गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ गà¥à¤²à¤¾à¤¬ के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अदà¥à¤­à¥à¤¤à¤¸à¥Œà¤‚दरà¥à¤¯ है। कितने सà¥à¤‚दर फूल खिले हैं और छिनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ देखता है तोकहता है कि कितने तीखे काà¤à¤Ÿà¥‡ हैं। इस पौधे में मातà¥à¤° दृषà¥à¤Ÿà¤¿ का फरà¥à¤• है।

जो गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को देखता है वह बà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को नहीं देखता है।कबीर ने बहà¥à¤¤ कोशिश की बà¥à¤°à¥‡ आदमी को खोजने की। गली-गली, गाà¤à¤µ-गाà¤à¤µ खोजतेरहे परंतॠउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कोई बà¥à¤°à¤¾ आदमी न मिला। मालूम है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कबीरभले आदमी थे। भले आदमी को बà¥à¤°à¤¾ आदमी कैसे मिल सकता है?

कबीर ने कहा-बà¥à¤°à¤¾ जो खोजन मैं चला, बà¥à¤°à¤¾ न मिलिया कोई,जो दिल खोजा आपना, मà¥à¤à¤¸à¥‡ बà¥à¤°à¤¾ न कोय।कबीर अपने आपको बà¥à¤°à¤¾ कह रहे हैं। यह à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ आदमी का परिचय है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि

अचà¥à¤›à¤¾ आदमी सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को बà¥à¤°à¤¾ और दूसरों को अचà¥à¤›à¤¾ कह सकता है। बà¥à¤°à¥‡ आदमी मेंयह सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ नहीं होती। वह तो आतà¥à¤® पà¥à¤°à¤¶à¤‚सक और परनिंदक होता है। वह कहताहै-भला जो खोजन मैं चला भला न मिला कोय,जो दिल खोजा आपना मà¥à¤à¤¸à¥‡ भला न कोय।

धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना जिसकी निंदा-आलोचना करने की आदत हो गई है, दोष ढूà¤à¤¢à¤¨à¥‡ की आदतपड़ गई, वे हजारों गà¥à¤£ होने पर भी दोष ढूà¤à¤¢ निकाल लेते हैं और जिनकी गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¹à¤£ की पà¥à¤°à¤•ृति है, वे हजार अवगà¥à¤£ होने पर भी गà¥à¤£ देख ही लेते हैं,कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में à¤à¤¸à¥€ कोई भीचीज नहीं है जो पूरी तरह से गà¥à¤£à¤¸à¤‚पनà¥à¤¨à¤¾ हो

या पूरी तरह से गà¥à¤£à¤¹à¥€à¤¨ हो। à¤à¤• न à¤à¤• गà¥à¤£ या अवगà¥à¤£ सभी में होते हैं। मातà¥à¤°à¤—à¥à¤°à¤¹à¤£à¤¤à¤¾ की बात है कि आप कà¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हैं गà¥à¤£ या अवगà¥à¤£à¥¤à¤¤à¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸à¤œà¥€ ने कहा है -

जाकी रही भावना जैसी,

पà¥à¤°à¤­à¥ मूरत देखी तिन तैसी।अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जिसकी जैसी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ होती है उसे वैसी ही मूरत नजर आती है।

 

 

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