Guest guest Posted July 15, 2007 Report Share Posted July 15, 2007 ll HARE RAM ll नर्मदा का हर कंकर शंकर पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।त्रिभि: सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेन तु यामुनम्।सद्य: पुनाति गाङ्गेयं दर्शनादेव नर्मदाम्। 'गंगा हरिद्वार तथा सरस्वती कुरुक्षेत्र में अत्यंत पुण्यमयी कही गयी है, किंतु नर्मदा चाहें गांव के बगल से बह रही हो या जंगल के बीच, वे सर्वत्र पुण्यमयी हैं। सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुनाजी का एक सप्ताह में तथा गंगाजी का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है किन्तु नर्मदा का जल केवल दर्शन मात्र से पावन कर देता है।' पुराणों में पुरुरवा तथा हिरण्यतेजा के तप से नर्मदा जी के पृथ्वी पर पधारने की कथा का विस्तार से वर्णन है। भूलोक में भगवती नर्मदा का आगमन इनकी कठोर तपस्या के फलस्वरूप ही हुआ। स्कन्दपुराण का रेवाखण्ड इस संदर्भ में पर्याप्त प्रकाश डालता है। वह स्थान अतिपवित्र है, जहां नर्मदा जी विद्यमान हैं। नर्मदा के तट पर जहां कहीं भी स्नान, दान, जप, होम, वेद-पाठ, पितृ-तर्पण, देवाराधन, मंत्रोपदेश, सन्यास-ग्रहण और देह-त्याग आदि जो कुछ भी किया जाता है, उसका अनंत फल होता है। माघ, वैशाख अथवा कार्तिक की पूर्णिमा, विषुवयोग, संक्रान्तिकाल, व्यतिपात एवं वैधृति योग, तिथि की वृद्धि अथवा क्षय (हानि), मन्वादि, युगादि, कल्पादि तिथियों में नर्मदा का सेवन अक्षय पुण्य प्रदान करता है। नर्मदा में स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रात:काल उठकर जो नर्मदा का कीर्तन करता है, उसका सात जन्मों का किया हुआ पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है। नर्मदा के जल से तर्पण करने पर पितरों को तृप्ति और सद्गति प्राप्त होती है।स्कन्दपुराण के अनुसार नर्मदा का पहला अवतरण आदिकल्प के सत्ययुग में हुआ था। दूसरा अवतरण दक्षसावर्णि मन्वन्तर में हुआ। तीसरा अवतरण राजा पुरुरवा द्वारा वैष्णव मन्वन्तर में हुआ। नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है। वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं। इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनो सुलभ हो जाते हैं। धर्मग्रन्थों में नर्मदा में प्राप्त होने वाले बाणलिंग (नर्मदेश्वर) की बड़ी महिमा बतायी गई है। नर्मदेश्वर (बाणलिंग) को स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना गया है। इनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती। आवाहन किए बिना इनका पूजन सीधे किया जा सकता है। कल्याण के 'शिवपुराणांक' में वर्तमान श्रीविश्वेश्वर-लिंग को बाणलिङ्ग बताया गया है। मेरुतंत्र के चतुर्दश पटल में स्पष्ट लिखा है कि नर्मदेश्वर के ऊपर चढ़े हुए सामान को ग्रहण किया जा सकता है। शिव-निर्माल्य के रूप उसका परित्याग नहीं किया जाता। बाणलिङ्ग (नर्मदेश्वर) के ऊपर निवेदित नैवेद्य को प्रसाद की तरह खाया जा सकता है। इस प्रकार नर्मदेश्वर गृहस्थों के लिए सर्वश्रेष्ठ शिवलिंग है। नर्मदा का बाणलिङ्ग भुक्ति और मुक्ति, दोनों देता है।भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं। विद्यार्थी विद्या और ज्ञान, धनार्थी सुख-समृद्धि, रोगी स्वास्थ्य, पुत्रार्थी पुत्र तथा मोक्षार्थी भव-बंधन से मुक्ति पा जाता है।आचार्यो का निर्देश है कि नर्मदा से बाणलिङ्ग प्राप्त करने के उपरांत पहले उसकी ग्राह्यता की परीक्षा करें। सर्वप्रथम बाणलिङ्ग को चावल से ठीक प्रकार से तौलें। हाथ में लेने के बाद दोबारा पुन: तौलने पर यदि बाणलिङ्ग हलका ठहरे तो वह गृहस्थों के लिए पूजनीय होगा। कई बार तौलने पर भी यदि वजन बिल्कुल बराबर निकले तो उस लिङ्ग को नर्मदा जी में विसर्जित कर दें। यदि बाणलिङ्ग तौल में भारी सिद्ध हो तो वह उदासीनों के लिए उपयुक्त रहेगा। तौल में कमी-बेशी ही बाणलिङ्ग की प्रमुख पहचान है। नर्मदा के नर्मदेश्वर अपने विशिष्ट गुणों के कारण शिव-भक्तों के परम आराध्य हैं। भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं।पद्मपुराण के स्वर्गखण्ड में देवर्षि नारद भगवती नर्मदा की स्तुति करते हुए कहते हैं- नम: पुण्यजले आद्ये नम: सागरगामिनि।नमोऽस्तुते ऋषिगणै: शंकरदेहनि:सृते।नमोऽस्तुते धर्मभृते वरानने नमोऽस्तुते देवगणैकवन्दिते।नमोऽस्तुते सर्वपवित्रपावने नमोऽस्तुते सर्वजग 2340;्सुपूजिते।'पुण्यसलिला नर्मदा तुम सब नदियों में प्रधान हो, तुम्हें नमस्कार है। सागरगामिनी तुमको प्रणाम है। ऋषि-मुनियों द्वारा पूजित तथा भगवान शंकर की देह से प्रकट हुई नर्मदे तुम्हें बारंबार नमस्कार है। सुमुखि तुम धर्म को धारण करने वाली हो, तुम्हें प्रणाम है। देवगण तुम्हारे समक्ष मस्तक झुकाते हैं, तुम्हें नमस्कार है। देवि तुम समस्त पवित्र वस्तुओं को भी परम पावन बनाने वाली हो, सारा संसार तुम्हारी पूजा करता है, तुम्हें बारंबार नमस्कार है।'नर्मदा जी का जितना भी गुण-गान किया जाए कम ही होगा। इनका हर कंकर शंकर की तरह पूजा जाता है। नर्मदा का स्वच्छ निर्मल जल पृथ्वी का मानों अमृत ही है। माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को शास्त्रों में 'नर्मदा जयंती' कहा गया है। Regards Shashie Shekhar HARE_RAM Astro_Remedies /स्ञ्जक्त्रह्रहृद्द>/स्ञ्जक्त्रह्रहृद्द>/स्ञ्जक्त्रह्रहृद्द>/स्ञ्जक्त्रह्रहृद्द>Shashi S. Sharma Delhi Mobile-09818310075 polite.astro polite_astro Shape in your own image. Join our Network Research Panel today! Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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