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Lord Dattatreya

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ll HARE RAM ll त्रिदेवों के शक्ति-पुंज हैं दत्तात्रेय भगवान के प्रत्येक अवतार का एक

विशिष्ट प्रयोजन होता है। श्रीदत्तात्रेय के अवतार में हमें असाधारण वैशिष्ट्य का दर्शन होता है। वे योगियों के परम ध्येय होने के कारण सर्वत्र 'गुरुदेव' कहे जाते हैं।

भगवान दत्तात्रेय का असाधारण कार्य है- अखण्ड रूप से ज्ञानदान करते रहना। इस प्रकार ये गुरु के रूप में अपने भक्तों को अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देकर सांसारिक दुख से मुक्त

करके उनकी अविद्या की निवृत्ति करते हैं। ये भक्त के हृदयाकाश में प्रकाशित होकर उसके अज्ञान-रूपी अंधकार को नष्ट कर देते हैं। स्वत: सिद्ध प्रकाश से अपने स्वरूप में

विराजमान रहने से ये 'देव' कहलाते हैं। सद्गुरुदेव दत्तात्रेय अवतार लेने से आज तक प्राणियों पर अनवरत उपकार एवं उनका उद्धार करते चले आ रहे हैं। उनके अवतार का प्रयोजन

सृष्टि के अन्त तक विद्यमान रहेगा। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान ही है। भगवान दत्तात्रेय के अवतार-चरित्र का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका

आविर्भाव सृष्टि के प्रारंभिक सत्र में ही हो गया था। ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव की

बहिन सती अनुसूया इनकी माता थीं। भगवान दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव महर्षि अत्रि के चरम तप का पुण्यफल तथा सती अनुसूया के परम पतिव्रता होने का सुफल है। प्राचीन ग्रंथों

में ऐसी कथा पढ़ने को मिलती है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश जब परमसती अनसूया की अत्यन्त कठोर परीक्षा लेने उनके आश्रम में पहुँचे तो माता अनुसूया ने उन्हें अपने सतीत्व के तेज

से शिशु बना दिया। इसी कारण दत्तात्रेय को त्रिदेवों की समस्त शक्तियों से सम्पन्न माना जाता है।श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां

त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है। इस पुराण के मत से ब्रह्माजी के अंश से चन्द्रमा, विष्णुजी के अंश से योगवेत्ता दत्तात्रेय और

महादेवजी के अंश से दुर्वासा ऋषि अनुसूया माता के गर्भ से उत्पन्न हुए। लेकिन वर्तमान युग में ब्रह्मा-विष्णु-महेशात्मक त्रिमुखी दत्तात्रेय की उपासना ही प्रचलित

है। इनके तीन मुख, छह हाथ वाला त्रिदेवमय स्वरूप ही सब जगह पूजा जा रहा है। दत्तमूर्ति के पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका

निवास बताया गया है। विभिन्न मठों, आश्रमों और मंदिरों में इनके इसी प्रकार के श्रीविग्रहों का दर्शन होता है। देवर्षि नारद नारदपुराण में त्रिदेवात्मक भगवान

दत्तात्रेय की स्तुति में कहते हैं- जगदुत्पत्तिकत्र्रे च स्थिति-संहारहेतवे। भवपाश-विमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ 'संसार के बंधन से सर्वथा मुक्त तथा संसार

की उत्पत्ति, पालन और संहार के मूल कारण-स्वरूप भगवान दत्तात्रेय को मेरा नमस्कार है।' योगियों का ऐसा मानना है कि भगवान दत्तात्रेय प्रात:काल ब्रह्माजी के स्वरूप में,

मध्याह्न के समय विष्णुजी के स्वरूप में तथा सायंकाल शंकरजी के स्वरूप में दर्शन देते हैं। तभी तो शास्त्रों में इनकी प्रशंसा में कहा गया है-आदौ ब्रह्मा

मध्ये विष्णुरन्ते देव: सदाशिव:। मूर्तित्रय-स्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते॥ 'दिन के प्रारंभ में ब्रह्मा-रूप, मध्य में विष्णु-रूप और अन्त में सदाशिव रूप धारण

करने वाले त्रिमूर्ति-स्वरूप भगवान दत्तात्रेय को नमस्कार है।' तन्त्रशास्त्र के मूल ग्रन्थ 'रुद्रयामल' के हिमवत् खण्ड में शिव-पार्वती के संवाद के माध्यम से

श्रीदत्तात्रेय के वज्रकवच का वर्णन उपलब्ध होता है। इसका पाठ करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस कवच का अनुष्ठान कभी भी निष्फल

नहीं होता। इस कवच से यह रहस्योद्घाटन भी होता है कि भगवान दत्तात्रेय स्मर्तृगामी हैं। यह अपने भक्त के स्मरण करने पर तत्काल उसकी सहायता करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये

नित्य प्रात: काशी में गंगाजी में स्नान करते हैं। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्तपादुका इनके भक्तों के लिये पूजनीय स्थान है। वे पूर्ण जीवन्मुक्त हैं। इनकी

आराधना से सब पापों का नाश हो जाता है। ये भोग और मोक्ष सब कुछ देने में समर्थ हैं। प्राचीनकाल से ही सद्गुरु भगवान दत्तात्रेय ने अनेक ऋषि-मुनियों तथा विभिन्न सम्प्रदायों

के प्रवर्तक आचार्यो को सद्ज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ किया है। इन्होंने परशुरामजी को 'श्रीविद्या-मंत्र' प्रदान किया था। 'त्रिपुरारहस्य' में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप

में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का उपदेश मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेयजी ने अनेक विद्याएं प्रदान की थीं। भक्त प्रह्लाद को

अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही जाता है। सांकृति-मुनि को अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया। कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्रविद्या एवं

नार्गार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय ने ही बताया था। परम

दयालु भक्तवत्सल भगवान दत्तात्रेय आज भी अपने शरणागत का मार्गदर्शन करते हैं और सारे संकट दूर करते हैं। जै श्रीराम शशि शेखर HARE_RAM / Astro_Remedies/ /स्ञ्जक्त्रह्रहृद्द>Shashi Shekhar Sharma

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'गुरुदेव' कहे जाते हैं। भगवान दत्तात्रेय का असाधारण कार्य है- अखण्ड रूप से ज्ञानदान करते रहना। इस प्रकार ये गुरु के रूप में अपने भक्तों को अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देकर

सांसारिक दुख से मुक्त करके उनकी अविद्या की निवृत्ति करते हैं। ये भक्त के हृदयाकाश में प्रकाशित होकर उसके अज्ञान-रूपी अंधकार को नष्ट कर देते हैं। स्वत: सिद्ध प्रकाश से

अपने स्वरूप में विराजमान रहने से ये 'देव' कहलाते हैं। सद्गुरुदेव दत्तात्रेय अवतार लेने से आज तक प्राणियों पर अनवरत उपकार एवं उनका उद्धार करते चले आ रहे हैं। उनके अवतार

का प्रयोजन सृष्टि के अन्त तक विद्यमान रहेगा। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान ही है। भगवान दत्तात्रेय के अवतार-चरित्र का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि

उनका आविर्भाव सृष्टि के प्रारंभिक सत्र में ही हो गया था। ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषि की कन्या और सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिलदेव

की बहिन सती अनुसूया इनकी माता थीं। भगवान दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव महर्षि अत्रि के चरम तप का पुण्यफल तथा सती अनुसूया के परम पतिव्रता होने का सुफल है। प्राचीन

ग्रंथों में ऐसी कथा पढ़ने को मिलती है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश जब परमसती अनसूया की अत्यन्त कठोर परीक्षा लेने उनके आश्रम में पहुँचे तो माता अनुसूया ने उन्हें अपने

सतीत्व के तेज से शिशु बना दिया। इसी कारण दत्तात्रेय को त्रिदेवों की समस्त शक्तियों से सम्पन्न माना जाता है।श्रीमद्भागवत में महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूया के यहां

त्रिदेवों के अंश से तीन पुत्रों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है। इस पुराण के मत से ब्रह्माजी के अंश से चन्द्रमा, विष्णुजी के अंश से योगवेत्ता दत्तात्रेय और

महादेवजी के अंश से दुर्वासा ऋषि अनुसूया माता के गर्भ से उत्पन्न हुए। लेकिन वर्तमान युग में ब्रह्मा-विष्णु-महेशात्मक त्रिमुखी दत्तात्रेय की उपासना ही प्रचलित

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आराधना से सब पापों का नाश हो जाता है। ये भोग और मोक्ष सब कुछ देने में समर्थ हैं। प्राचीनकाल से ही सद्गुरु भगवान दत्तात्रेय ने अनेक ऋषि-मुनियों तथा विभिन्न सम्प्रदायों

के प्रवर्तक आचार्यो को सद्ज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ किया है। इन्होंने परशुरामजी को 'श्रीविद्या-मंत्र' प्रदान किया था। 'त्रिपुरारहस्य' में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप

में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का उपदेश मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेयजी ने अनेक विद्याएं प्रदान की थीं। भक्त प्रह्लाद को

अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही जाता है। सांकृति-मुनि को अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया। कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्रविद्या एवं

नार्गार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय ने ही बताया था। परम

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