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बिखरी कोशी बिखरा बिहार..फिर भी, मन में सपने हजार

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यह लमà¥à¤¬à¥€ कविता उन शहीदों के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ हेतॠपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है जो नहीं जानते थे की कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤˜ कोशी का कà¥à¤°à¤‚दन उन पर मृतà¥à¤¯à¥ संकट उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने वाला है। जो अनजाने में ही à¤à¤• भयावह रात में, मà¥à¤ जैसे सरकारी सेवकों के अपराध के कारण, कोशी के आंसà¥à¤“ं के समà¥à¤¦à¥à¤° में, सदा के लिठसो गà¤à¥¤ यह कावà¥à¤¯ उन

देश-भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में भी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ है जो बिहार में नहीं है पर हमारे संकट में हमारे साथ खड़े है --- मैं à¤à¤¸à¥‡ सभी बिहार भकà¥à¤¤à¥‹ को सैलà¥à¤¯à¥‚ट करता हूà¤à¤¸à¤®à¥‚ह बना कर, बचे हà¥à¤ मजलूमों के लिठदिन रात काम कर रहे है -----अरविंद पाणà¥à¤¡à¥‡à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤•-बिहार भकà¥à¤¤à¤¿ आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨(समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿- पà¥à¤²à¤¿à¤¸ उप-महानिरीकà¥à¤·à¤•, तिरहà¥à¤¤ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, मà¥à¤œ) जब लोकतंतà¥à¤° गल जाता हैनौकर, मालिक बन जाता है बिखरी कोशी बिखरा बिहारफिर भी, मन में सपने हजार१-हो नदी या कि नारी, उरà¥à¤®à¤¿à¤²à¤šà¤¾à¤¹à¥‡à¤—ी बिखरे नहीं सलिलकोई तटबनà¥à¤§ उसे रोकें हो अनियमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤, कोई टोके कोशी तो करती थी पà¥à¤•ारबांधे कोई, दे उसे पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥¨-पर कही, किसी ने नहीं गà¥à¤¨à¤¾à¤•ोशी का कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¦à¤¨ नहीं सà¥à¤¨à¤¾

नौकरशाहों का था निरà¥à¤£à¤¯ हो शानà¥à¤¤à¤¿ या कि फिर मचे पà¥à¤°à¤²à¤¯ मजदूरी नहीं बà¥à¤¾à¤à¤—ेजन में जल-पà¥à¤°à¤²à¤¯ मचाà¤à¤—ें३-खणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ कà¥à¤¶à¤¹à¤¾ तटबनà¥à¤§ हà¥à¤†à¤•ोशी को कà¥à¤°à¥‹à¤§ पà¥à¤°à¤šà¤¡ हà¥à¤†à¤†à¤‚सू, लहरों में बदल गà¤à¤œà¤²à¤®à¤—à¥à¤¨ गà¥à¤°à¤¾à¤®, वन, नगर हà¥à¤à¤œà¤¬ नारी, नदी कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ होतीसारे समाज की कà¥à¤·à¤¤à¤¿ होती४-मन में दानव सा लोभ लिà¤à¤®à¤¾à¤¨à¤µ ने कैसे पाप किà¤à¤ªà¤¾à¤¨à¥€ बनकर ईमान बहाकहने को ना कà¥à¤› शेष रहा उनà¥à¤®à¤¤ हंसी नौकरशाहीगलकर बह गई लोकशाही५-कहने को है मजबूत तनà¥à¤¤à¥à¤°à¤•ोई कà¥à¤› करने को सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¬à¤¾à¤¹à¤° से हसà¥à¤¤à¤•à¥à¤·à¥‡à¤ª नहींकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯-करà¥à¤® में कà¥à¤·à¥‡à¤ª नहींपर जनगण का टूटा सपनाकानून हà¥à¤† अपना अपना६-वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² कोशी है दौड़ रहीरà¥à¤•ने का ठौर तलाश रहीजब नई न कोई राह मिलीतो गांव, नगर की ओर चलीभटके लाखों जन दà¥à¤µà¤¾à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¸à¤ªà¤¨à¥‡ बिखरे है तार तार७-घर दà¥à¤µà¤¾à¤° बहा, परिवार बहासपनों का भी संसार बहाकोई अनाथ शिशॠबिलख रहाबूढा भी कोई फफक रहामाताà¤à¤‚ पà¥à¤¤à¥à¤°-विहीन हà¥à¤ˆà¤µà¤¤à¥à¤¸à¤²à¤¤à¤¾ ममता दीन हà¥à¤ˆà¥®-फिर भी लहरों को चीर चीरजीने की चाह लिठ, अधीरपल पल बरसाते नयन-नीरअनà¥à¤¤à¤° में धारे गहनपीरबचकर आया जो बिलख रहाखà¥à¤¦ बचा, मगर परिवार बहा९-कंधे पर बकरी को डालेबचà¥à¤šà¥‡ को लटका लिया गलेपानी में पौरà¥à¤·-अगà¥à¤¨à¤¿ जलाजलमगà¥à¤¨ भूमि पर बà¥à¤¾ चलामानव का जय-अभियान धनà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨à¤µ, सà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ का सà¥à¤¤ अननà¥à¤¯à¥§à¥¦à¤—िरते को फिर से लिया थामपूछा ना मजहब, जाति, नामसोदर तो नहीं, मगर, बढकररोते भाई का हाथ पकड़गदगद हो गले लगाते हैहम उनको शीश नवाते है११तटबनà¥à¤§ नहीं टूटा था यहभगवानॠनहीं रà¥à¤ à¤¾ था यहकोशी का दोष नहीं कोईकिसà¥à¤®à¤¤ थी कहीं नहीं सोईउनका ही है यह घोर पापजो करते अब मिथà¥à¤¯à¤¾-विलाप१२अचà¥à¤›à¤¾ ! न अभी कà¥à¤› बोलेंगेपर, कभी तो मà¥à¤¹ को खोलेंगेजो शतà¥à¤°à¥ बना मानव का, जलकिसके पापों का था पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤²à¤¦à¥‡à¤¨à¤¾ होगा उतà¥à¤¤à¤° इसकावह कौन ? पाप था यह किसका१३जब बधने को वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² कोशीबजती थी तब उनकी वंशीमन बहलाते थे चाटà¥à¤•ारकहते थे- है शà¥à¤­ समाचारà¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हो रहा था सà¥à¤–पà¥à¤°à¤¦à¤®à¥Œà¤¸à¤® लगता सब ओर सà¥à¤–द१४-अपराध करे जो, बचा रहेवà¥à¤¯à¤­à¤¿à¤šà¤¾à¤° करे जो, बचा रहेनौकर, मालिक की चाल चलेनौकरशाही फूले व फलेतब लोकतंतà¥à¤° गल जाता हैनौकर, मालिक बन जाता है

 

१५है धरà¥à¤®-पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• लोकतंतà¥à¤°à¤¸à¤¤à¥à¤•रà¥à¤®-पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• लोकतंतà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥à¤¤à¤¾- पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• लोकतंतà¥à¤°à¤¸à¤®à¤¤à¤¾ का रकà¥à¤·à¤• लोकतंतà¥à¤°à¤œà¤¬ लोकतंतà¥à¤° गल जाता हैनौकर, मालिक बन जाता है

 

 

 

Aravind Pandey

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