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ras shastr ke adbhut granth

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पारद तंतà¥à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ का सरà¥à¤µ

शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  तंतà¥à¤° है इसमे कोई दो

मत नही है. à¤à¤¸à¤¾ मैं इस लिठनही कह

रहा हूठकी मैं ख़à¥à¤¦ रस शासà¥à¤¤à¥à¤°

का अभà¥à¤¯à¤¾à¤¸ करता हूठबलà¥à¤•ि इस

लिठमैं à¤à¤¸à¤¾ कह रहा हूठकà¥à¤¯à¥‚ंकि

यह à¤à¤• मातà¥à¤° वो तंतà¥à¤° है जिसके

दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृजन , पालन और संहार की

कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ संपन होती है. सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ

कहते हैं की ६४ तंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में यह

सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ और अनà¥à¤¤à¤¿à¤®

तंतà¥à¤° है मतलब इस तंतà¥à¤° तक

पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ के लिठआपको

सारी चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾ पार करनी पड़ती

हैं, अपने आपको साबित करमा पड़ता

है , और यदि इस बात को ग़लत मानते

हैं तो बताइठकी आज à¤à¤¸à¥‡ कितने

लोग हैं जो पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• रूप से १८

संसà¥à¤•ार करके दिखा सकते हैं.

 

सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ की विराट महिमा का à¤à¤•

पहलॠयह भी रहा है की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने

सबसे पहले समाज के सामने उन १०८

संसà¥à¤•ारों के विषय में बताया

जिनके विषय में कभी लोगो ने

सà¥à¤¨à¤¾ भी नही था. आख़िर à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‚à¤

था? इसकी वजह यह रही है की पारद ८

संसà¥à¤•ार के बाद शकà¥à¤¤à¤¿ वां होकर

आपको भौतिक और शारीरिक

उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ देता है , यह तो ठीक

है पर १८ के बाद तो वो विपरीत

कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ करने लगता है और उसे

संभालना और नियंतà¥à¤°à¤£ में रखना

बहà¥à¤¤ कठिन कारà¥à¤¯ या ये कहे की

लगभग असंभव ही हो जाता है . यदि

इसे नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ कर लिया जाठतो

साधक को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के वे रहसà¥à¤¯

उपलबà¥à¤§ हो जाते हैं जिनके विषय

में शायद कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ भी नही की जा

सकती.

 

सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ तनà¥à¤¤à¥à¤°à¤‚

में कहा है की यदि मà¥à¤à¥‡ २-४ शिषà¥à¤¯

भी मिल जाठतो मैं भारत को उसका

आरà¥à¤¥à¤¿à¤• गौरव पà¥à¤¨à¤ƒ दिला सकता

हूà¤, साथ ही साथ उन गà¥à¤°à¤‚थो को भी

फिर से समाज के सामने रखा जा सके

जो पारद जगत के दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥

हैं.

 

रस शासà¥à¤¤à¥à¤° का अधà¥à¤¯à¤¨ करने वाले

साधको के लिठयह गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥

अनिवारà¥à¤¯ हैं कà¥à¤¯à¥‚ंकि यह सारे

गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ न सिरà¥à¤«à¤¼ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• हैं

बलà¥à¤•ि कालातीत भी हैं.

 

इन गà¥à¤°à¤‚थों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤

कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ साधकों को विसà¥à¤®à¤¿à¤¤

कर देती हैं . अलग अलग समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯

की गà¥à¤ªà¥à¤¤ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को समà¤à¤¨à¤¾ और

कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप से करने का आनंद

ही और है. विदेशों में लोग रस

तंतà¥à¤° को सिरà¥à¤«à¤¼ दरà¥à¤¶à¤¨ शासà¥à¤¤à¥à¤°

तक ही रखे हà¥à¤ हैं पर हमारे यहाà¤

इनका कई बार पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• रूप से

दिगà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ भी कराया है. यह

गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं:

 

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ तनà¥à¤¤à¥à¤°à¤‚

 

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ सिदà¥à¤§à¤¿

 

सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ तनà¥à¤¤à¥à¤°à¤‚ (परशà¥à¤°à¤¾à¤® )

 

आनंद कनà¥à¤¦

 

रसारà¥à¤¨à¤µ

 

रस रतà¥à¤¨à¤¾à¤•र – नितà¥à¤¯ नाथ

 

रस रतà¥à¤¨à¤¾à¤•र – नागारà¥à¤œà¥à¤¨

 

रस हà¥à¤°à¤¦à¤¯ तंतà¥à¤°

 

रस सार

 

रस कामधेनॠ(लोह पाद)

 

गोरख संहिता (भूति पà¥à¤°à¤•रण)

 

वजà¥à¤°à¥‹à¤¦à¤¨

 

शैलोदक कलà¥à¤ª

 

काक चंदिशà¥à¤µà¤°à¥€

 

रसेनà¥à¤¦à¥à¤° मंगल

 

रसोपà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¤¤

 

रस चिंता मणि

 

रस चूडामणि

 

रसेनà¥à¤¦à¥à¤° चिंतामणि

 

रसेनà¥à¤¦à¥à¤° चूडामणि

 

रस संकेत कलिका

 

रस पदà¥à¤¦à¤¤à¤¿

 

रोदà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤®à¤²

 

लोह सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ

 

रसेनà¥à¤¦à¥à¤° सार

 

और भी अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚

पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर अधà¥à¤¯à¤¨ करमा ही चाहिà¤

कà¥à¤¯à¥‚ंकि जब आप इनका अधà¥à¤¯à¤¨

करेंगे तभी आप हमारी गौरवशाली

परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ के मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को समà¤

पाà¤à¤‚गे.

 

 

 

                                      ****\

ARIF****

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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